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तुम की दरवाज़े पे खड़ा विकी धीमे स्वर में पूछा -- खुश हो न नदी थी मचल रही ख़्याली पुलाव पका रही थी ज़िन्दगी यूँ ही चलती रही रोटी यूँ ही नहीं फूलती थी गुब्बारे सी वो थी

Hindi आशा निकाल ही रही थी Poems